पिपरौली बाजार

पिपरौली बाज़ार गोरखपुर शहर से करीब १५ किलोमीटर दूर मग़रिब में गीडा (GIDA) से मुल्हक एक तारीखी क़स्बा है जो सात हज़ार बराबर की मुश्तरका आबादी को अपने दामन में बसाये हुए है। माजी में यह क़स्बा गाढा कपड़ा, फूल और पीतल के बर्तन के लिए मशहूर था लेकिन अब ये सारे कारोबार करीब करीब बंद हो गए हैं।
यहां तीन मस्जिदें हैं और दो मकातब ईदगाह भी है और मसलमानों का कब्रिस्‍तान भी छह सात मंदिर हैं एक पराना स्‍कूल है जिसकी तामीर कब हूई थी यह अब कोई बताने वाला नहीं है इस स्‍कूल के साथ एक बोर्डिंग हाउस और कूतूबखाना भी था अब खण्‍डहर की सूरत में इस स्‍कूल की इमारत को देखा जा सकता है इस जगह कछ नये स्‍कूल के कमरे तामीर हो गये हैं कस्‍बा में एक मिडिल स्‍कूल भी है जो 90 साल पूराना है इसी स्‍कूल में आंजहानी वजीरेआला जनाब वीर बहादर सिंह और आंजहानी एम एल ए जनाब रवींदर सिंह ने तालीम हासिल की थी इस स्‍कूल की तामीर साबिक एम एल ए धर्म नारायण सिंह साहब के वालिद के जरिये हूई थी यहां बी डी ओ आपिस भी है जो करीब 60 गांव के तरकयाती कामों की देख-रेख करता है जल निगम से पानी की सप्‍लाई भी अवाम को मयस्‍सर है।

पिपरौली बाजार चार मूहल्‍लों पर मश्‍तमिल है बाहर के मूहल्‍ले में मूस्लिम आबादी है दरम्‍यानी मोहल्‍ले में बाजार है जहां हिंदू आबादी है। इस बाजार से कर्बोज्‍वार के करीब पचासों गांव अपनी जिंदगी की जरूरियात पूरी करते हैं। यहां हर तरह की दूकानें मौजूद हैं ख्‍वाह इसका ताल्‍लक राशन आटे या कपडा या बरतन से हो या दवाओं से इस बाजार में हमों वक्‍त रौनक रहती है और कौमी यकबहती का एक संगम नजर आता है।

मालूम होता है कि यहां के कदीमी बाशिंदे ख्‍वाह उनका ताल्‍लक हिंदू मजहब से हो या मूस्लिम मजहब से कहीं से मनतकल हो कर आये हैं. गमान होता है कि जमींदाराना निजाम के तहत इस बाजार को जरूरत के मूताबिक आबाद किया गया है. हमारे खानदान के बूजूर्ग भी अल्‍तपात गंज टाण्‍डा से आये और बस गये मेरे दादा बाजार में कपडे के मशहूर ताजिर थे जआकता के मालिक थे घर से जब भी बाहर निकलते थे सर पर सापा जरूर बांधते थे हिंदू और मोस्लिम सब मोसूप की इज्‍जत करते थे इन्‍तहाई खलीक और मूंसिप थे गांव की पंचायत में पैसला हक गोई के साथ करते थे

जब मैं पांच बरस की उम्र तै कर चूका था कि वालिद बूजूर्गवार का साया सर से उठ गया दादा की सरपरस्‍ती हासिल रही मेरे वालिद चार भाई थे जो समीअ मोहम्‍मद अबू मोहम्‍मद लआल मोहम्‍मद और मोहम्‍मद उस्‍मान के नाम से जाने जाते थे मैं अबू मोहम्‍मद का बेटा हआ दादा के इंतकाल के बाद मेरे बडे वालिद समीअ मोहम्‍मद साहब ने वालिद मरहूम का हक अदा किया उनके इंतकाल के बाद लआल मोहम्‍मद और मोहम्‍मद उस्‍मान साहबान ने शपहकत पहरमाई लआल मोहम्‍मद साहब ने दरजा हस्‍तम के इम्‍तहान की कामयाबी के बाद मौलवी और आला काबिलियत के इम्‍तहनात में इम्‍तयाजी हैसियत हासिल की मखलूस और तहजीब गूजर इंसान थे मेरा दीनी मिजाज मरहूम का अताकर्दा है मेरे वालिद मरहूम के नेक सिपहत भाईयों ने वालिद मोहतरम के न होने का कभी एहसास न होने दिया खदा का शक्र है कि मैं गांव का पहला ग्रेजूएट हूं और मेरी बडी बेटी आबिदा को भी गांव की पहली ग्रेजूएट खातून होने का शर्प हासिल है मझे आज भी यह गम खाये जाता है कि पिपरौली बाजार एक मशहूर बाजार होते हूए भी तालीमी एतबार से पसमांदा है.

अब्‍दल हई अंसारी पयाम

18 सितंबर 2008